रफ्ता रफ्ता ख्वाब जब कोई टूटता है

क्या पता मुझको कि मेरी क्या खता है,
वक्त का आखिर किसी को क्या पता है।
वो मिले तो सब मिला और हम खिले,
फिर ये मुस्तकबिल मेरा क्यूं रूठता है।
दर्द एक सीने में रहता है बिलखता,
रफ्ता रफ्ता ख्वाब जब कोई टूटता है।
– पंकज मिश्रा