एक रंग सुनहरा ऐसा हो
  तेरे चेहरे के जैसा हो
लगे जो मेरे चेहरे पर
फिर रूप  तेरे ही जैसा हो 
#होलीमुबारक

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एक रंग प्यार का ऐसा हो , जो प्यार दिलों में लाता हो….

रंगमहल सी दुनियाँ अपनी 

रंग ही इसका ख्वाब है

जितना रंग गिराओ इस पर

होती उतनी बेताब है

एक रंग गिरा दो ऐसा इस पर जो दिल का  महताब है

 खिल उठे अंजुमन फिर ऐसे

जहाँ मिले प्यार बेहिसाब है

एक रंग प्यार का ऐसा हो 

 जाति ,धर्म का भेद मिटाता हो 

रंग जाये सभी एक ही रंग में

बस मानवता का नाता हो 

उड़े रंग जो हवाओँ में 

एक रंग अनोखा बनाता हो 

इस  अपरिमित स्वेत जगत में 

रंग तीन दिखलाता हो 

एक रंग प्यार का ऐसा हो 

जो प्यार दिलों में लाता हो |

‘पंकज मिश्रा’

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स्त्री

मैं हूँ क्या  ….

इस निर्मम वन में अधखिली सी कली ,

या सदागामिनी कोई तटिनी ;

इस समंदर में पड़ी नौका कोई ,

मंज़िलों तक ले जाती हुई राह कोई ;

हर सफ़र में साथ देती तेरी सौगामिनी,

या निराशा के फलक को चीरती हुई रोशनी;

मैं हूँ तुम्हारे मुस्कराहट की वजह ,

या तुम्हारी व्यस्तता में एक कलह 

क्या तुम्हारे जीवन पर मैं सिर्फ एक बोझ हूँ 

या तुम्हारे इस निर्मम जीवन में जीवत्व की एक खोज हूँ 

मैं  हूँ  क्या..

खुद को खुद में ढूँढती हुई 

आकाश में उड़ने का कोई ख्वाब बुनती हुई 

जब मैं ही हूँ इस जीवन जगत का आधार 

फिर क्यूँ दिया जाता है मुझे जन्म से पहले ही मार

क्यूँ सरेराह कर दिया जाता है  मेरी अस्मिता को तार- तार 

मैं हूँ बसी हर रूह में एक माँ, बहन, बेटी के रूप में 

बदल ले ए ज़माने तू अपनी सोच को 

नहीं तो ढूंढते रह जाओगे एकदिन मुझे साये में धुप के 

#पंकज मिश्रा

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http://www.pankaj0271.wordpress.com

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कभी बहकते है तो कभी मचल जाते है…

कभी बहकते है तो कभी संभल जाते है

तुझे देख कर हम मचल जाते है 

लाख समझाया इस दिल ए नादाँ  को 

फिर भी अरमां इस जहाँ में खिल जाते है 

कहाँ  है हुआ मिलन अलि का कली से 

 पहले ही इसके रूप यौवन निखर जाते है 

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