उड़ा दो रंग हवाओं में इन्हें भी रंगीन होने दो।
धरा को आसमां और आसमां को जमीन होने दो।।
फर्क करता जमाना है यहाँ चमड़ी के रंगों में।
सभी को एक ही रंग से अब रंगीन होने दो।।
रंगो उस रंग में मुझको मीरा जिसमें रंगी थी।
मेरे मालिक रहम अपनी मुझपे आमीन होने दो।।
बदलते रंग प्रतिपल हैं यहाँ दुनियां के लोगों के।
न उलझाओ मुझे इनमें मुझे अब ज़हीन होने दो।।
-©speaking pen