सभी को एक ही रंग से रंगीन होने दो..

उड़ा दो रंग हवाओं में इन्हें भी रंगीन होने दो।
धरा को आसमां और आसमां को जमीन होने दो।।

फर्क करता जमाना है यहाँ चमड़ी के रंगों में।
सभी को एक ही रंग से अब रंगीन होने दो।।

रंगो उस रंग में मुझको मीरा जिसमें रंगी थी।
मेरे मालिक रहम अपनी मुझपे आमीन होने दो।।

बदलते रंग प्रतिपल हैं यहाँ दुनियां के लोगों के।
न उलझाओ मुझे इनमें मुझे अब ज़हीन होने दो।।
-©speaking pen

बेचैनी..

याद तो बहुत आये मगर दिख न सके।
लिखने जो बैठे तुझे तो लिख न सके।।
हिलते रहे लभ मगर कुछ कह न सके।
इन नम आँखों से भी आँसू बह न सके।।
-©speaking pen

भाषा..

न जाने कितने है नाम,

अभिव्यक्ति है मेरा काम।
मुखरित होती हर अधरों से,
और बाँटती भाव तमाम।
हर भटके को राह दिखाती,
और अधूरे को अंजाम।
अक्षर, शब्दों और वाक्यों से,
शोभित मैं हो जाती हूँ।
छोटे, बड़े और बूढ़ों के,
सबके काम बनाती हूँ।
देश, काल और संस्कृति का,
ज्ञान तुम्हें मैं कराती हूँ।
हिंदी, बांग्ला, उर्दू ,अंग्रेजी,
न जाने क्या-क्या कहलाती हूँ।
@पंकज मिश्रा